8 फांसी देख चुके तिहाड़ के पूर्व लॉ अफसर सुनील गुप्ता ने बताया- आतंकी अफजल ने मरने से पहले गाना गाया था

1966 में एक फिल्म आई थी, बादल। इसे अस्पी ईरानी ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म में एक गाना था "अपने लिए जिए तो क्या जिए...तू जी ऐ दिल जमाने के लिए।" इस गाने को मन्ना डे ने गाया था और लिखा था जावेद अख्तर ने। ये वही गाना था, जिसे अफजल गुरु ने फांसी पर चढ़ने से पहले गाया था। अफजल गुरु 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था, जिसे 9 फरवरी 2013 को फांसी पर लटकाया था। जब अफजल को फांसी पर लटकाया गया, तब वहां सुनील गुप्ता भी मौजूद थे। सुनील गुप्ता तिहाड़ जेल में लॉ अफसर थे और 1981 से 2016 तक रहे। 35 साल तक तिहाड़ में नौकरी करने के दौरान सुनील गुप्ता ने 8 फांसियां देखीं। इसमें रंगा-बिल्ला से लेकर इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह और केहर सिंह की फांसी भी शामिल थी।


1) आतंकी अफजल गुरु



फांसी वाला दिन कैसे बीता: सुबह अफजल गुरु ने कहा- वह कश्मीरी अलगाववादी नहीं है। वह सिर्फ भ्रष्ट नेताओं की जान लेना चाहता था। इसके बाद उसने 1966 में आई फिल्म बादल का "अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए" गाना गाया। ये गाना उसने पूरा गाया। ऐसा बहुत ही कम होता है कि जब आखिरी वक्त हो और कोई गाना गाए। उसने चाय मांगी, लेकिन उस दिन चाय बनाने वाला चला गया था, तो अफजल आखिरी बार चाय भी नहीं पी पाया। फांसी पर लटकाने के दो घंटे बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित किया। अफजल को मकबूल बट्ट के बगल में ही दफनाया गया था। 


जेल में कैसा व्यवहार था:  अफजल किताबें पढ़ने का शौकीन था। अक्सर किताबें पढ़ता था। उसे हाई सिक्यूरिटी सेल में रखा जाता था। 


2) सतवंत सिंह और केहर सिंह



फांसी वाला दिन कैसे बीता: केहर सिंह ने धार्मिक किताब पढ़ी और पूछा- क्या उसके बचने की कोई उम्मीद है? किसी ने कुछ नहीं कहा। सतवंत ने कुछ नहीं कहा लेकिन वह भी डरा हुआ था। इन दोनों के चेहरे भी फांसी से पहले काले पड़ गए थे। इन दोनों के शव भी परिवार वालों को नहीं दिए गए।


जेल में कैसा व्यवहार था: सतवंत हिंसक था। वह कई बार गार्ड पर हमला कर चुका था। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस महेश चंद्रा से भी बदतमीजी करता था। केहर सिंह सतवंत से 30 साल बड़ा था और अक्सर शांत ही रहता था। केहर जेल में अकेला रहना पसंद करता था।


3) मकबूल बट्ट



फांसी वाला दिन कैसे बीता: 11 फरवरी की सुबह एसडीएम मकबूल बट्ट से मिले। उसकी फांसी से पहले जेल में मुस्लिम कैदियों ने विरोध-प्रदर्शन भी किया। कइयों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। मकबूल का रंग सफेद था, लेकिन फांसी के वक्त उसकी शक्ल काली पड़ गई थी।


जैल में कैसा व्यवहार था: मकबूल जेल में धार्मिक था। वह दिन में 5 बार नमाज पढ़ता था। उसकी अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। इसी वजह से जेल के कर्मचारी-अधिकारी उसकी मदद भी लिया करते थे। मकबूल को उम्मीद थी कि वह छूट जाएगा। लेकिन, 6 फरवरी 1984 को मकबूल के समर्थकों ने ब्रिटेन के बर्मिंघम में इंडियन डिप्लोमैट रविंद्र म्हात्रे की हत्या कर दी। जिसके बाद उसे फांसी दे दी। उसके शव को परिवार वालों को भी नहीं दिया गया।


4) करतार सिंह- उजागर सिंह



फांसी वाला दिन कैसे बीता: दोनों बहुत रो रहे थे। दोनों बार-बार यही कह रहे थे कि हम गरीब हैं, इसलिए हमें लटकाया जा रहा है। जो पैसे वाला था और जिसने हमसे ये करवाया, वह तो छूट जाएगा।


जेल में कैसा व्यवहार था: दोनों जेल में बड़े शांत रहते थे। दोनों भाई थे और बहुत गरीब परिवार से थे। करतार-उजागर अक्सर कहते थे जिसने मर्डर करवाया है, वो तो छूट जाएगा और हम 500 रुपए के लिए लटक जाएंगे।' दोनों जेल में कार्पेंटरी का काम करते थे। उनकी फांसी के दो साल बाद 22 जुलाई 1985 को दिल्ली हाईकोर्ट ने डॉ. नरेंद्र जैन और उसकी सेक्रेटरी को रिहा कर दिया।


5) रंगा-बिल्ला



फांसी वाला दिन कैसे बीता : सुबह रंगा-बिल्ला को जगाया गया और उन्हें चाय दी गई। दोनों को नहलाया गया और काले कपड़े पहनाए गए। बाद में फांसी घर ले जाया गया। फांसी से पहले बिल्ला रोए जा रहा था। जबकि, रंगा खुश था। उसने चिल्लाया- "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।' दोनों के चेहरे का रंग काला हो रहा था। तभी कालू और फकीरा नाम के जल्लाद ने लीवर खींच दिया और दोनों लटक गए। दो घंटे बाद जब डॉक्टर ने चेक किया। बिल्ला मर चुका था, लेकिन रंगा में अभी भी सांस बाकी थीं, क्योंकि रंगा दुबला-पतला था और गिरते समय सांस रोक रखी थी। उसके बाद रंगा की टांगें खींची गईं, तब जाकर उसकी मौत हुई। 


जेल में कैसा व्यवहार था : रंगा हमेशा खुश रहता था। वो हमेशा बोलता रहता था- "रंगा खुश।" ये किसी पिक्चर का डायलॉग था और रंगा इसे अक्सर बोला करता था। बिल्ला बड़ा सीरियस किस्म का आदमी था। वो हमेशा रोता रहता था। वो हमेशा रंगा को कोसता रहता था और कहता रहता था कि इसकी वजह से ही मर्डर हुआ, क्योंकि रंगा की नजर गलत हो गई थी। अगर गीता के ऊपर रंगा की गलत नजर न होती तो शायद वो बच जाती।